हे मेघ बस एक बार तुम जमकर बरस जाओ।
तुम्हारी गड़गड़ाहट सुनने के लिए तरसे हैं सब
ना जाने आखिर दर्शन दोगे तुम कब
अब तो हमारे ऊपर तुम जल बरसाओ
बस एक बार तुम जमकर बरस जाओ।
बहुत राह देख ली अब इंद्रधनुषों की
बुझ नहीं रही प्यास मेरी वर्षों की
हे काले मेघ अब तो हमारे ऊपर तुम तरस खाओ
बस एक बार तुम जमकर बरस जाओ।
सूख रहे हैं तालाब झड़ने, सूख रहे हैं नदिया नाले
सूख रहे हैं कुएं सारे, कैसे उनमें हम बाल्टी डाले
प्यासे हैं हम सभी, प्यासे हैं जानवर बेचारे
अब तो किसानों के चेहरे पर तुम खुशियां लाओ
बस एक बार तुम जमकर बरस जाओ।
मुरझा रही है प्रकृति की सुंदर हरियाली
उदास बैठी है बेचारी मोर मतवाली
केवल धरती की बात नहीं है चारों ओर खुशियां फैलाओ
बस एक बार तुम जमकर बरस जाओ।
हवा चल रही है, धूल भी उड़ रही है
तुम्हारे स्वागत में पेड़ों ने भी हैं पत्ते बिछाए
बूंदे भी धरती को छूने की आस है लगाए
अब हमें तुम और मत तरसाओ
बस एक बार तुम जमकर बरस जाओ।
- कृष्णा मंडल, नौवीं 'स'
केंद्रीय विद्यालय कमान अस्पताल, अलीपुर कोलकाता।